ठेस : - एक फांस थी जो निकली नहीं। एक गांठ थी जो सुलझी नहीं। एक बात थी जो ऐसी बिगड़ी कि फिर बनी नहीं। एक आग थी जो बुझी नहीं। वह छली गई तो डरी नहीं। कभी दबी नहीं झुकी नहीं। अड़ी लड़ी और सूरज सी चमकी दमकी। --- अचानक : - वह जीती क्यों। वह हारा क्यों। वह पानी क्यों। वह ज्वाला क्यों। कोई आगे क्यों। कोई पीछे क्यों। मैं तुम का भेद नहीं तो झगड़ा क्यों। प्रेम की डाल पे डाह का बसेरा क्यों। साथ रहेंगे-साथ चलेंगे इस मन की इस धारा में कंकड़ क्यों। --- बदला : - भावनाएं बड़ी कोमल होती हैं और इसीलिए जब वे आहत होती हैं खासकर अपनों द्वारा तो कई बार संवेदनशील व सुकुमार मन भी अविश्वसनीय लगने वाले ऐसे काम कर उठता है जिनकी कल्पना भी उसके लिए नहीं की जा सकती थी। --- डैडी : - आधुनिकता का अंधानुकरण आदमी को जब उसकी जड़ों से दूर करने लगे तो भले ही वह इसे समझ सके या नहीं उसके भीतर एकऐसा खोखलापन उतर आता है जो न उसके लिए अच्छा होता है और न ही घर परिवार के लिए।
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