रंगभूमि - प्रेमचंद जी का लिखा हुआ उपन्यास है। अपने इस उपन्यास में प्रेमचंद जी ने नौकरशाही तथा पूंजीवाद के साथ हुआ जन संघर्ष का तांडव सत्य निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह ग्रामीण जीवन तथा स्त्रियों की भयावह दुर्दशा की छवि को अंकित किया है। प्रेमचंद जी ने अपने इस उपन्यास में राष्ट्रीय दृष्टिकोण को बहुत ऊंचे रूप से प्रस्तुत किया है। जहां पर परतंत्र भारत की सामाजिक राजनीतिक धार्मिक और आर्थिक समस्याओं का खुलकर वर्णन है। रंगभूमि उपन्यास की पूरी कथा उन भावनाओं और विचारों में विचरती है जो देश में नवीन आवश्यकता आशाओं की पूर्ति के लिए संकीर्णता और वासना से अलग हटकर निस्वार्थ भाव और शिद्दत से देश की सेवा की आवश्यकता को उस समय काफी ज्यादा महसूस किया जाता था।