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About The Book
Description
Author
जीवन को पल घड़ी और दिनों के आधार पर नहीं बल्कि समग्र रूप से देखना चाहिए। क्योंकि जीवन के प्रत्येक गुजरे हुए पल या अवस्था का आने वाले सभी पल और अवस्थाओं पर सौ प्रतिशत प्रभाव पड़ता है या फिर कहें तो प्रत्येक अगला पल या अवस्था प्रत्येक पिछले पल और अवस्था पर पूर्ण रूप से निर्भर है या अन्योन्याश्रित है। फिर चाहे बचपन हो जवानी हो बुढ़ापा हो या अगला जन्म सब के सब एकदूसरे पर अन्योन्याश्रित हैं। ऐसा कभी हो ही नही सकता कि बचपन के अनुभवों और कर्मो का प्रभाव जीवन की अन्य अवस्थाओं पर ना पड़े। भूत में किए कर्म वर