Rangin Kafan


LOOKING TO PLACE A BULK ORDER?CLICK HERE

Piracy-free
Piracy-free
Assured Quality
Assured Quality
Secure Transactions
Secure Transactions
Fast Delivery
Fast Delivery
Sustainably Printed
Sustainably Printed
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.

About The Book

जीवन को पल घड़ी और दिनों के आधार पर नहीं बल्कि समग्र रूप से देखना चाहिए। क्योंकि जीवन के प्रत्येक गुजरे हुए पल या अवस्था का आने वाले सभी पल और अवस्थाओं पर सौ प्रतिशत प्रभाव पड़ता है या फिर कहें तो प्रत्येक अगला पल या अवस्था प्रत्येक पिछले पल और अवस्था पर पूर्ण रूप से निर्भर है या अन्योन्याश्रित है। फिर चाहे बचपन हो जवानी हो बुढ़ापा हो या अगला जन्म सब के सब एकदूसरे पर अन्योन्याश्रित हैं। ऐसा कभी हो ही नही सकता कि बचपन के अनुभवों और कर्मो का प्रभाव जीवन की अन्य अवस्थाओं पर ना पड़े। भूत में किए कर्म वर्तमान के लिए फल बनते है और वर्तमान में किए कर्म भविष्य के लिए संचित होते हैं। वास्तव में प्रत्येक जीवन कर्मों के गणितीय सूत्रों से बंधा है जहाँ पर जोड़ घटाव गुणा भाग वर्गमूल घनमूल घात अघात आदि सब कर्मों के अनुसार होता है और उन्हीं से परिस्थितियों की प्रमेय भी बनती है और हल भी उन्हीं से होती है। वास्तव में प्रत्येक जीव ब्रह्म की रचित दुनियाँ में से ब्रह्म की भाँति अपने लिए एक अन्य दुनियाँ का निर्माण करता है जिसे कर्म और कर्मफलों की दुनियाँ कहते हैं। किंतु जहाँ ब्रह्म एकतरफा होकर जीव-अजीवों की प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करता है वहीं इंसान के लिए एकतरफा नियंत्रण असंभव है क्योकि इंसान व्यवहार की दुनियाँ में से ही अपने लिए दुनियाँ निर्माण करता है। इसलिए इसमें क्रिया पर प्रतिक्रिया जरूर होती है और यही प्रतिक्रिया ही कर्मफल हैं जो कभी पूर्वाद्ध के कर्मों के अनुसार तो कभी नए निर्मित कर्मों के अनुसार फ़ल के रूप में सामने आते रहते हैं। इसलिए जरूरी है कि इंसान मानवता की जरूरत अनुसार नए कर्मों का निर्माण एवं नियंत्रण करे।
downArrow

Details