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About The Book
Description
Author
मित्रों... जब कभी कहीं धर्म की बात होती है तो प्रायः हम उसे अपने तथाकथित मजहब से जोड़ दिया करते हैं और अपने राष्ट्र को पूरी तरह विस्मृत कर देते हैं । आज जरुरत है की हम धर्म के मामले में अपने राष्ट्र की महत्वपूर्ण भूमिका का भी तनिक विचार करें जैसा की हम सबको भली भाँति ज्ञात है की सोने की वैभवशाली लंका को जीतने के बाद भी प्रभु श्रीराम ने अयोध्या के लिए ‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी‘‘ कहकर एक अद्भुत बात कही । अतः जब हमारे प्रभु स्वयं अपने श्रीमुख से अपनी मातृभूमि की महत्ता कह रहे हों तो हमें भी अपने राष्ट्र और इसके निवासियों के उत्थान और कल्याण के बारे में चितन करने की आवश्यकता है । इस देश के गौरवशाली इतिहास को स्मरण कराने एवं आपसी भेदभाव को दूर करके उनमें पारस्परिक प्रेम और सम्मान बढ़ाने के उद्देश्य से भरपूर मेरी काव्य अभिव्यक्ति का संकलन है ‘‘ राष्ट्र चिंतन ‘‘ जहाँ धर्म अपने वास्तविक स्वरुप में चारों ओंर अनमोल मोतियोँ की तरह बिखरा पड़ा है ..... असाधु