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Description
Author
‘रेड फायर’ के अफ़साने में खौफ़ की तिजारत करने वालों की वो परछाइयांँ हैजिनकी वजह से बनता है ‘लाल गलियारा’। जंगल के अंदर वालों की सरकार के जुल्म की मियाद के दिन थोड़े हैं। ऐसी सियासी बातें कई दशक से सुनी जा रही है। शहर में रहने वाले जंगलों में जा छिपे। गाँवों वालों को यक़ीन दिलायाकि सरकार से बेहतर केवल माओ की सरकार है। हर समस्या का हल सिर्फ ‘माओ’ के पास है। गाँवों वालों का कब ये भरोसा बन गयेसरकार को भी नहीं पता। जंगल की सरकार कहती है वोट वाली सरकार के सितम कब तक? मजलूम और मखलूक अपने को कब तक समझोगे। वर्दी वालों की दरिंदिगी कब तक अपने घर की बहू बेटियों को सहने को कहोगे। भूखमरी और गरीबी में उकता कर कब तक मरते रहोगे। खाकी जुल्म करती है और खादी वाले बरगलाते हैं। बड़ी उम्मीदों से उनकी राह न देखोजो तुम्हें अब तक रोटी और रहने के लिए घर नहीं दे सके। घने जंगलऊंची पहाड़ियों के बीच अंदर के गाँव सड़कों से अछूते हैं। बिजली की रोशनी भी नहीं पहुँची। जंगल के पार वहाँ जंगल वालों की सरकार हैं। वहांँ स्कूलों के नाम पर बाल संघम’ हैं। जिसमें क्रांति की तालीम दी जाती है। वंदेमातरम कहना अपराध है। गूंजते हैं लाल सलाम के नारे। माओ की क्रांति के बखान होते हैं। बच्चों से लेकर गांँवों की हर गलियों को पता है माओ का नाम। ‘जनताना अदालतों’ से अब लोेग ऊबने लगे हैं। वहीं लाल गलियारे से तौबा कर लेने वाले अब समझ गए हैंकि माओ के एजेंडे में गरीबी नहीं हैसिर्फ खौफ़ की तिजारत है। ऐसा बदलाव आने की वजह क्या है और उसके बाद की बनने वाली तस्वीर का अफ़साना है ‘रेड फायर’।