जैसे दुननयााँ के हर देशप्रदेश जनपद की अपनी सभ्यता संस्कृकत इकतहासआस्था और परम्परायें हैं वैसे ही भोजपुररयााँ गााँवों में जाकतयों के नाम पर बसे टोलों की अपनी-अपनी सभ्यतासंस्कृकतआस्था और परम्परायें है।इस कवकवधता के बावजूद जैसे देशप्रदेशजनपद एक रदखते हैवैसे ही ये गााँव भी एक रदखते हैंपरन्तु गहराई में जाने पर कवकवध लोक संस्कृकतयों के अन्तभुनक्तक्त का अद्भुत दृश्य रदखता है।जजसे तप्पा डोमागढ़ गााँव के बहाने सहेजने का प्रयास है यह ककताब। शायद सत्ता और प्रायोजजत धमों की एक बडी चादर से ढ़ककर कवकवध लोक संस्कृकतयों को नमटाने की साजजश सरदयों से की जाती रही हैइसके बावजूद अपनी जीवटता के कारण आज भी ये जजन्दा हैं।यह एक दुयोग ही है कक शोधकतानलेखक बौनिक जन इस गहराई में उतरने से बचते रहे हैं।हर परम्परा कवचारसंस्कृकत को वैरदकपौराक्तणक खााँचे में सेट करने की कोचशश करते रहे हैंजबकक शास्त्रों से इतर लोकसंस्कृकतयों का एक व्यापक संसार है। इसीचलए International Society for Folk Narrative Research (ISFNR) के एक कांग्रेस में चालीस देशों के लोक वातानशास्त्री सन्टिचलत हुए थेजजनके मुखारकवन्द से न जाने ककतनी बार फूल झर रहे थे-There are so many nationalities in India अथानत भारत में बहुत सारी राष्ट्रीयताएाँ हैं ।संस्कृकत की एक ही धारा को वे राष्ट्ररीयता मान कर चल रहे थेयरद वेररसचन इन तप्पाडोमागढ़ को पढ़ेंगे तो देखेंगे कक एक भोजपुरी अंचल में ही संस्कृकतयों का ककतना बडा मेला लगा है?इसचलए राष्ट्र की एकता प्रकक्रया को प्रत्यक्ष पहचानने के चलए कवकवधता को जानना आवश्यक है और इसके चलए ररसचन इन तप्पा डोमागढ़ को पढ़ना जरूरी लगता है।
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