Reth ke Gharaunde

About The Book

‘काव्यांजलि’ मेरे गीतों का प्रथम काव्य संकलन है। इसका श्रेय मेरे गुरु श्री रवीन्द्र शुक्ल जी को जाता है उन्होंने 19 जुलाई 2014 को निज निवास पर गोष्ठी में मुझे आमंत्रित किया इसमें श्री महाकवि अवधेश जी सहित झाँसी के अनेक साहित्यकार उपस्थित थे। उन्होंने मुझसे भी कुछ सुनाने को कहा मैं इस क्षेत्र से पूर्णतः अनभिज्ञ थी अतः मैनें श्री शैल चतुर्वेदी की कविता सुना दी और कहा मेरा अपना लिखा मेरे पास कुछ भी नहीं है इस पर शुक्ल जी ने कहा ‘‘मुझे ख़ुशी है कि तुमने सच तो बोला लोग मेरे सामने ही मेरी रचना अपनी कह कर सुना जाते हैं‘’। इसके बाद मुझे लगा कि मैं क्योंक्यों नहीं लिख सकती बस उसी समय लेखनी उठाई तो सर्व प्रथम अपना अतीत ही अंकित हो सका जिसकी पहली पंक्ति इस प्रकार है- ‘‘जब जीवन रूपी सुमन खिला था जग से कैसा प्यार मिला। जब थी ममता चाह मुझे तब छलता सब संसार मिला।।’’ जब पढ़ा तो मुझे लगा यह क्या किसी को सुना भी नहीं सकती। फिर मैंने दूसरा गीत शृंगार पर लिखा - ‘‘मीत मैं किसको बनाऊँ गीत मैं किसको सुनाऊँ‘‘ श्री शुक्ल जी को जब मैंने यह गीत दिखाया तो उन्होंने कहा ‘‘अगर यह तुमने लिखा है तो तुम बहुत कुछ लिख सकती हो कवि बनता नहीं अवतरित होता है’’। बस यही शब्द मेरे लिए प्रेरणा स्रोत बने और मेरी कलम स्वतः चलने लगी। श्री शुक्ल जी ने सदैव मेरा मार्ग दर्शन किया तथा कविता के गुर भी सिखाये जैसे लघु गुरु आदि कैसे गिने जाते हैं। उन्होंने मुझे साहित्य परिक्रमा दी जिसमें उनका लेख ‘‘कवि और कविता‘” पढ़ा मैंने उससे बहुत कुछ जाना व समझा। उन्हीं के घर एक बार महाकवि अवधेश जी से मिलना हुआ वह मुझे नहीं जानते थे। श्री शुक्ल जी उनका परिचय अपने शिल्प गुरु के रूप में कराया। उन्होंने पहली बार मुझे पत्रकार भवन में सुना मैंने बेटियों पर लिखी एक कविता सुनाई। मेरी कविता सुनकर श्री अवधेश जी ने कहा ‘‘मैं तुम्हें कवि मानता हूँ” तुम्हारी कविता में कोई मात्रिक दोष नहीं है तभी से उनका भी मार्ग दर्शन मिला। वही पर पहली बार श्री अखिलेश त्रिपाठी ‘‘विशेष‘‘ जी एवं श्री गौरीशंकर उपाध्याय जी से परिचय हुआ। मुझे सभी का आशीर्वाद एवं प्रोत्साहन मिला। मेरे लेखन का कार्यकाल अल्प है। मैंने जो कुछ लिखा है वह आपके सामने ‘‘काव्यांजलि” में प्रस्तुत कर रही हूँ मेरे लिए यह क्षेत्र नया है फिर भी लिखने का प्रयास किया है। इसे मैं माँ भारती और अपने गुरुओं का प्रसाद मानती हूँ। मैं आभारी हूँ आदरणीय महाकवि अवधेश जी की जिन्होंने स्नेह प्रदान किया और लगभग सभी गीतों का सुना और मार्ग दर्शन भी दिया । इस कृति मैं मैंने 65 गीत संजोए हैं ये गीत कैसे हैं यह पाठक ही बता सकेंगे। यदि इन गीतों का समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है तो मैं अपने आपको धन्य मानूँगी। अंत में मैं गुरुवर श्री रवीन्द्र शुक्ल जी का अत्यंत आभारी हूँ जिन्होंने मेरा मार्ग दर्शन कर इस लायक बनाया। मैं अपने परिवार में अपने पुत्र चि0 सिद्धार्थ मिश्र एवं दोनों पुत्रियाँ आयुष्मती ऋचा व आयुष्मती नेहा तथा दोनों दामाद चि0 रुद्र व चि0 अनिल के साथ-साथ अपने पति श्री अशोक मिश्र जी की भी आभारी हूँ जिन्होंने हमेशा तन मन धन से सहयोग कर मुझे इस स्थान पर पहुँचाया। उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना मात्र औपचारिकता ही नहीं हृदय की आंकाक्षा भी है। अतः उन्हें नमन्। अस्तु शुभम् । अकिंचन सुमन मिश्रा ‘पंचवटी‘1274 खाती बाबा झाँसी (उ0प्र0) मो0 9935351220
Piracy-free
Piracy-free
Assured Quality
Assured Quality
Secure Transactions
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
downArrow

Details


LOOKING TO PLACE A BULK ORDER?CLICK HERE