राइडिंग द टाइगर :: भारत की आजादी के राजनीतिक अवसरवादियों ने सुविधाएं बांटने के साथ-साथ समाज में असंतुलन और असंतोष भी बांटा था। इस असंतुलन का ही परिणाम था कि लोगों में संविधान के प्रति अविश्वास भी जन्म लेने लगा। आज के युवाओं में एक आक्रोश असंतोष और कुंठा का भाव व्याप्त हो रहा है। इसका एक बड़ा कारण उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेने के बाद भी भविष्य की अनिश्चितता और उससे उपजा फ्रस्ट्रेशन है। जो विश्वविद्यालय अतीत में स्वस्थ वैचारिकी और परिवर्तनकामी क्रांतियों के लिए जाने जाते थे उन्हीं विश्वविद्यालयों में एक अलग ढंग की खोखली राजनीति और सामन्ती सोच आज के युवाओं को निराशा और नशे की ओर मोड़ रही है। एक आक्रोश भीतर ही भीतर धुंधुआ रहा है। ज्वालामुखी बनने के कगार पर है। जो नशे के दलदल में नहीं फंसे हैं वे युवा बहुत पैनी दृष्टि से भारत के भीतर और भारत से बाहर चल रही गतिविधियों को देख रहे हैं और उसके समाधान के बारे में भी विचार कर रहे हैं। आजादी के बाद से ही युवाओं की समस्याओं अथवा असंतोष को उदासीन भाव से समझने वाली सरकारों को अब सचेत होने की आवश्यकता है। भारत एक युवा राष्ट्र है और युवाओं के भीतर असंतोष और आक्रोश पैदा होना पूरे राष्ट्र के लिए घातक है। युवाओं की इन्हीं सब समस्याओं और भारत की राजनीतिक उथल-पुथल को केंद्र में रखकर इस उपन्यास की रचना हुई है। नीरजा माधव अपने क्रांतिकारी लेखन के माध्यम से अपने समय की नकारात्मक प्रवृत्तियों के विरोध में खड़ी होती हैं और शोषित वंचित लोगों की आवाज उठाने के लिए जानी जाती हैं। वे हमेशा उसके पक्ष में खड़ी होती हैं जिसके पक्ष में कोई नहीं होता। इस उपन्यास के माध्यम से वे भारतीय युवाओं की आवाज बनकर और उनके अधिकारों के पक्ष में तनकर खड़ी होती हैं। आज के युवाओं की मन:स्थिति के साथ चलती एक अद्वितीय औपन्यासिक कृति राइडिंग द टाइगर जो इस कालखंड के युवा राष्ट्र की जीती जागती तस्वीर है और परिवर्तन की मशाल भी।
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