ये कहानी एक पुलिस ऑफिसर और एन्काउंटर स्पेशिलिस्ट पर लिखी गई एक काल्पनिक और दिलचस्प कहानी है जिसका तबादला एक ऐसे गांव में हो जाता है जहाँ नक्सलियों का राज है। वो अपना तबादला रुकवाने की पूरी कोशिश करता है लेकिन नाकाम रहता है और मजबूरीवश उसे अपना घरबार और परिवार छोड़कर वहाँ जाना पड़ता है। और उसे वहाँ पुलिस स्टाफ के नाम पर कुछ ही लोग मिलते हैं जिनका तबादला भी किसी न किसी कारण से वहाँ होता है। लेकिन वहाँ जाने के बाद भी वो वहाँ से अपना तबादला वापस शहर में करवाने की जुगत लगाता रहता है। आखिरकार उसे और उसके साथियों को एक दिन उन नक्सलियों का सामना करना ही पड़ता है। वो पूरी हिम्मत से उनका सामना करता है और उन्हें उनके अंजाम तक पहुंचाता है। साथ ही कई सालों से बंद मंदिर को भी खुलवाता है और उस जगह को खुद से और गांव वालों को रिहा करवाता है।
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