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About The Book
Description
Author
हे सर्वव्यापिनी सर्वशक्तिमान माँ रिश्वत आपकी जय हो। विजय हो। आप अजेय हैं आप धन्य हैं। इस हरी-भरी वसुंधरा पर सर्वत्र आपका ही साम्राज्य है। क्या घर क्या ऑफिस क्या सचिवालय और क्या उद्योग-धंधे हर तरफ आपकी ही बहार है। इस हवा से कौन बच सकता है। आप कल भी थीं आज भी हैं और कल भी रहेंगी। अंग्रेजों के जमाने में आप‘ ‘डाली’ के नाम से मशहूर थीं फिर दस्तूर हुईं चंदा हुईं कुमकुम काजल हुईं और अब तो आप सर्वमान्य माँ भवानी हुई जा रही हैं। मायारूपी रूपसी आप तो साक्षात् नवदुर्गा हैं। कुरसी तो आपकी अनुजा हैं हे कलियुगी भवानी! आपको सहस्रों प्रणाम! है कोई इस वीर महि पर जो आपके प्रभाव को नकार सके। चाँदी के जूते के सामने मुझेहाँह खोल सके। आपके एक रुपए में सवा रुपए की शक्ति है। आपको चढ़ाया प्रसाद पाने को मंत्री संत्री अफसर चमचे चपरासी सब तरसते हैं। आप काली हों या सफेद गुणवाली हैं। आप सचमुच महान् हैं। —इसी संग्रह से गरीबी भूख मध्यम वर्ग रिश्वत समाज चमचावाद कवि-कर्म भ्रष्टाचार आम आदमी की परेशानियों को इन व्यंग्यों में प्रमुखता से उठाया गया है। मानवीय त्रासदियों को उकेरा गया है; दुष्कर्म पर विचार किया गया है; साहित्यिक व्यंग्य भी हैं; कला संस्कृति को भी व्यंग्य का विषय बनाया है। इस संग्रह में राजनैतिक व्यंग्य भी हैं जो आज के राजधर्म को परिभाषित करते हैं। कुल मिलाकर यह एक पठनीय और संग्रहणीय व्यंग्य-संकलन है जो आज के समाज की विसंगतियाँ और विद्रूपताओं पर तीक्ष्ण प्रहार करता है|