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About The Book
Description
Author
रूप में जो रुबाइयाँ संकलित हैं 1959 में ये पहली बार उर्दू में प्रकाशित की गयी थीं। इन पर दी गयीं कुछ सम्मतियाँ: ‘‘इन रुबाइयों ने मुझ पर गहरा असर छोड़ा है। ये Re-discovery of India हैं। मानो भारत की छवि इन रुबाइयों में उजागर होती है।’’ - जवाहरलाल नेहरू ‘‘ये रुबाइयाँ युग-युगान्तर तक भारतीय संस्कृति का अनुभव कराती रहेंगी।’’ - डा. राजेन्द्र प्रसाद ‘‘हिन्दू संस्कृति का साक्षात दर्शन करना हो तो कोई रूप की रुबाइयाँ पढ़े या सुने।’’ - पंडित मदनमोहन मालवीय ‘‘ ‘फिराक’ उर्दू शायरी का सुहाग है।’’ - ‘जोश’ मलीहाबादी ‘‘मैं क्या कविता करता हूँ कविता तो ‘फ़िराक़’ करते हैं।’’ - सुमित्रानन्दन पंत ‘‘प्रयाग आकर अगर तुमने ‘फ़िराक़’ के मुँह से ‘फ़िराक़’ की कविता नहीं सुनी तो व्यर्थ प्रयाग आए।’’ - ‘निराला’