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About The Book
Description
Author
प्रेम कोई कराता नहीं न हम मात्र देख कर करते हैं.. किसे? कब? कैसे? कौन? क्यों? और कितना भा जायेगा? यह तो हृदय भी नहीं जानता!जैसे आकाश को नापा नहीं जा सकता वैसे ही प्रेम सभी पैमानों के परे है। न हीं इसे सही या गलत के पैमानों पर तौला जा सकता हैं न हीं सुख या दुख में बँधता है ये। प्रेम रस में आकंठ डूबा व्यक्ति केवल प्रेम जानता है। उसमें मिलने वाली पीड़ा भी सुंदर होती है और उसके कारण आया प्रलय भी प्रेम की पराकाष्ठा होती है। कुछ ऐसा हीं तो प्रेम है काशी का अपने वीर से.. स्वच्छंद रसिक संपूर्ण और अपरिमित अनंत। और इन्हीं सभी भावों को पिरो कर लिखी गई रचना है रुद्रकाशी।