मेरे लिए कहानी लिखना मानवीय संवेदना को पकड़ने की कोशिश है क्योंकि मेरा मानना है कि साहित्य में संवेदना ही प्राणतत्त्व है जो उसे कालातीत होने से बचाता है। रचनाकार अपनी दृष्टि से यथार्थ में अर्थ की खोज करता है अर्थात वस्तुगत यथार्थ विषयीगत यथार्थ बन जाता है। इस प्रकार जब बाह्य या स्थूल यथार्थ सूक्ष्म मानवीय संवेदना का स्वरूप ग्रहण करता है तो मानवीय यथार्थ बन जाता है और अर्थवत्ता को वृहत्तर आयाम प्रदान करता है। अर्थवत्ता के इसी वृहत्तर आयाम को जानने-समझने की कोशिश है मेरी कहानियाँ.... - आदित्य अभिनव
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