यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि भारत की धरती विविध प्रकार के विचारों और अभ्यासों से अनुप्राणित होती रही है. ज्ञान की आभा से निरंतर प्रदीप्त होती रही यहाँ की जिज्ञासु वृत्ति खुले मन से विभिन्न परम्पराओं के साथ संवाद करते हुए आगे बढ़ती रही है. इसका रहस्य इस सोच में निहित है कि अस्तित्व का सहज स्वभाव ही है एक से अनेक होना और फिर अनेक से एक होना. हजारों वर्षों से सतत प्रवहमान भारतीय सभ्यता की यात्रा में विभिन्न चिंतन धाराओं के अंतर्गत धर्म-केन्द्रित उदात्त मूल्यों का सतत सृजन होता रहा है. यह पुस्तक अनेक युगों में विस्तृत इस परम्परा की अनेक प्रभावी छवियों को प्रस्तुत करती है जिसमें संस्कृति के जीवंत माध्यम के रूप में मानव अवतार लिए श्रीराम और श्रीकृष्ण के साथ ही संत दार्शनिक भक्त समाज-सुधारक साहित्यकार और राजनीतिज्ञ सभी तरह के उन्नायाक शामिल हैं. इनके प्रयत्नों ने कठिन समय में समाज के उत्थान को गति देने का कार्य किया है. उनका जीवन और कर्म देश और समाज के लिए समर्पण की भावना से योगदान का अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत करता है. जीवनदायी प्रसंग के साथ ही ऐसे संघर्षशील व्यक्तित्व आत्म-विश्वास और कर्मठता की परिभाषा सरीखे हैं. इन व्यक्ति-आरेखों से गुजरते हुए पाठक को मानवीय मूल्यों से अनुप्राणित जीवन से साक्षात्कार होता है. आज के व्यस्त जटिल और विमानवीकृत हो रहे समय में जीवन की संभावना को रेखांकित करती यह पुस्तक सार्थक जीवन जीने के लिए आमंत्रित करती है.
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