कात्यायनी का यह पहला कविता संकलन 1994 में आधार प्रकाशन पंचकूला (हरियाणा) से प्रकाशित हुआ था। 1999 में इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित हुआ और तीसरा संस्करण (परिकल्पना से प्रकाशित पहला संस्करण) 2008 में आया था। पहले संस्करण के लिए कवि-आलोचक सुरेश सलिल ने जो परिचयात्मक टिप्पणी लिखी थी उसे भी नये संस्करण में पुस्तक के फ़्लैप पर यथावत प्रकाशित किया गया था। विगत तीन दशकों के दौरान कात्यायनी की कविताओं ने चालू मुहावरों और काव्य-रूढ़ियों से हटकर अपनी अलग राह और पहचान बनायी है। उनकी कविताओं में वैचारिक गुरुत्व और भावनात्मक आवेग का विरल द्वन्द्वात्मक तनाव और सन्तुलन देखने को मिलता है। कात्यायनी की कविताएँ विविध धरातलों पर जीवन के द्वन्द्वों का सन्धान करती हैं और अपने देशकाल की सभी विडम्बनाओं से अदम्य युयुत्सा के साथ टकराती हुई भविष्य की दुनिया के संघटक अवयवों की खोज करती हैं। स्मृतियों और कल्पना की खदानों से कविता का कच्चा माल जुटाने के लिए वे बार-बार उस खौलती हुए तरल धातु की नदी में उतरती हैं जो हमारे आसपास की ज़िन्दगी है। इस संकलन में शामिल ‘सात भाइयों के बीच चम्पा’ और ‘हॉकी खेलती लड़कियाँ’ पिछले कुछ दशकों की सर्वाधिक लोकप्रिय और चर्चित हिन्दी कविताओं में शुमार की जाती हैं।
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