यह उपन्यास अठारवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दौर में उत्तर भारत की राजनीति में जबरदस्त हलचल मचा देने वाली बेगम समरु के रहस्य और रोमांच से भरे जीवन पर आधारित है। जब औरतें पर्दे से से बाहर नहीं निकलती थीं कोठे पर मुजरा करने वाली समरू ने एक यूरोपीय सेनानी को अपना दीवाना बनाकर शादी कर ली। समरू ने पति के साथ अपनी एक छोटी सी सेना खड़ी कर ली और बड़े-बड़े सूरमाओं को अपनी बहादुरी और रणकौशल से धूल चटा कर मेरठ के समीप सरदाना की गद्दी पर जा बैठी। सिर पर पगड़ी बांधे घोड़े पर सवार होकर सेना का नेतृत्व करती वीरांगना....कल्पना कीजिये उस आश्चर्यचकित कर देने वाले दृश्य की।
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