समय का चक्र अपनी अबाध गति से चलता है। परिस्थितियां अनुकूल-प्रतिकूलहोती रहती हैं। परिस्थितियांनुसार ही प्रस्तुत उपन्यास के काल्पनिक पात्रा अंकित हुएहंै। संयोगवश उपन्यास के काल्पनिक पात्रा यदि किसी के वास्तविक जीवन से मेलखा जाएं तो लेखक किसी भी रूप में उसके लिए जवाबदेह नहीं होगा। उपन्यास कानायक महाविद्यालय का प्रोफेसर है। जो सभी को अपना समझकर उन पर विश्वासकर लेता है। लेकिन कुछ उच्चाकांक्षी स्वार्थी और दगाबाज सहयोगियों के कारणनायक की अनुकूल परिस्थितियां भी प्रतिकूल बन जाती हैं। उसका कसूर केवलइतना था कि उसने प्रिंसिपल में चयन न होने के कारण सिस्टम की खामियों कोचुनौती दी थी। राज्य सरकार ने अपने चहेतों को प्रिंसिपल भत्र्ती करवाने के लिएयूजीसी के नियमानुसार सीधी भत्र्ती के मापदण्ड अपनाने के बावजूद भी पुराने सेवानियम ही रखे। मैरिट में होते हुए भी लोक सेवा आयोग ने जब नायक का चयन नहींकिया तो उसने प्रिंसिपल की सीधी भत्र्ती को उच्च न्यायालय में चुनौति क्या दी किसहयोगी प्रोफेसर ही नहीं वकील जज और सारा सरकारी तन्त्रा उसे घेरने के लिएएकजुट हो गये।प्रस्तुत उपन्यास में 2012-13 से 2019-20 का काल अंकित है। राजकीयमहाविद्यालयों की राजनीति कार्यवाहक प्रिंसिपल बनने की लालसा कार्यपालिकाविधानपालिका और न्यायपालिका के फ्रैण्डली मैंच के कारण उच्चत्तर शिक्षा विभागमें फैले भ्रष्टाचार के अलावा समसामयिक मुद्दों के साथ-साथ 2014 और 2019 केचुनाव के बाद उपजी राजनीति भी उजागर हुई है। उपन्यास लिखते समय समसामयिकमुद्दों पर कुछ संबंधित महत्त्वपूर्ण सामग्री समाचार-पत्राों के संपादकीय लेखों से मिली।कुछ वाक्य उपन्यास में जस के तस ले लिए। उन सभी संपादकों का आभार करनाअपना कत्र्तव्य समझता हूँ।”दादा फौजी“ के बाद ”सात साल तक“ मेरा दूसरा उपन्यास है। मैं चाहूँगा किपाठक समीक्षा-आलोचना अवश्य दें ताकि मुझे और उपन्यास लिखने की प्ररेणामिले।
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