Sab Kuch Aur Kuch Bhi Nahi / सब कुछ और कुछ भी नहीं

About The Book

कावेरी नंदन चंद्रा बताती हैं कि बोल चाल की भाषा में बातकरें तो जहाँ हम (हम से मेरा मतलब 'मैं' से है) जीवन इकठ्ठाकर रहें हैं उस पात्र में एक सूक्ष्म छिद्र है जिस में से इकठ्ठाकिया हुआ जीवन रह रह कर कुछ न कुछ कभी कभीथोड़ा थोड़ा कर के रिस्ता जा रहा है फिर धीमे-धीमे वो पुनःइकठ्ठा होता है और सौभाग्यवश उसके रह जाने के साथ हीरह जाता है सुने हुए देखे हुए सोचे हुए और समझे हुए जीवनका एक सूक्ष्म ढेर हम उसे 'कविता' कह कर पुकारते हैं जो इसक्षण में तो सब कुछ है परंतु अगले क्षण शायद कुछ भी न हो ।
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