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About The Book
Description
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*सभ्यता विमर्श का समय* : एक जीवंत सभ्यता का साक्षी भारत अपनी सांस्कृतिक यात्रा में अनेक चुनौतियों का सामना करते हुए आज विश्व पटल पर एक सशक्त देश के रूप में अग्रसर हो रहा है । इक्कीसवीं सदी में समग्र विकास के लिए शिक्षा , भाषा , ज्ञान , सामाजिक समरसता और स्वास्थ्य आदि के क्षेत्रों में विचारपूर्वक निवेश की आवश्यकता है । इसके लिए अपने सामर्थ्य और दुर्बलताओं दोनों पर ध्यान देना होगा । सभ्यता की निर्मिति में अपनी संस्कृति के स्रोतों को पहचान कर उपयोग में लाना आवश्यक होगा । इस दृष्टि से सजग रूप से सक्रिय होने की आवश्यकता है । इसके लिए औपनिवेशिक प्रभाव से मुक्त होना पड़ेगा और सांस्कृतिक विवेक के साथ देश की प्रकृति के अनुकूल कदम उठाने होंगे । यह पुस्तक भारतीय सभ्यता के समकालीन प्रश्नो को उठाती है और आत्म साक्षात्कार का आवाहन करते हुए सम्भावनाओं को रेखांकित करती है । देश की सामाजिक व्यवस्था और उसमें ज़रूरी उन्मेष लाने के लिए उद्यत करती यह पुस्तक संवाद का मार्ग प्रशस्त करती है ।