कहानियाँ -‘और डोर उलझ गई’ ‘मैं अभी हारी नहीं’ तथा ‘तलाक जिन्दगी से नहीं’ सभी में स्त्री के जीवन में अक्सर आने वाली दुविधापूर्ण स्थितियों की झांकी है जिसमें स्त्री की सहनशक्ति संघर्ष शक्ति और संयम का सकारात्मक तरीकों का उपयोग करके समाधान की कोशिश है। ये विरोधाभास ही है कि जिस परिवार से आज नारी मुक्ति तलाश रही है वास्तव में वो ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति रहा है आसरा रहा है। जिन सेलेब्रिटीज महिलाओं की शादी नहीं हुई परिवार नहीं है उनके जीवन में झाँक कर देखने पर ये बात सिद्ध हो जाएगी इसलिए पारिवारिक समस्याओं का हमेशा टकराव से हल ढूंढना किसी के हित में नहीं है। स्त्री अपनी शक्तियों का प्रयोग करके अपनी रेखा बड़ी करके दिखा सकती है। सनातन समाज की बहुत सी स्त्रियाँ ये कर भी रही हैं इसीलिए आज भी घर बसे हैं। संघर्ष दूसरों को नीचा दिखाना अपनी सोच को ही सही मानना आदि समाज या परिवार की समस्याओं को सुलझाने का श्रेष्ठ मार्ग नहीं है। मेरी इन कहानियों मे व्यावहारिकता है थोड़ा आदर्शवाद है पर संवेदना मुख्य तत्व नहीं है। इसी प्रकार अन्य कहानियों में भी जीवन में व्यावहारिकता विवेक धैर्य आदि तत्वों के महत्व पर जोर दिया गया है। इस संग्रह की लगभग सभी कहानियाँ स्तरीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं और छह-सात कहानियाँ पुरस्कृत भी हैं। अंत में कहानी तो कहानी है जीवन इतना विविध विचित्र विशाल और अनोखा है कि कहानियों में नहीं समा सकता। किसी एक जीवन का सत्य दूसरे पर लागू नहीं होता। यही कहानियों और साहित्य की सीमा है। आशा है कि मेरी कहानियाँ पाठकों को निराश नहीं करेंगी। -लक्ष्मी नारायण अग्रवाल
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