इस गीत संग्रह की प्रबल प्रेरणास्रोत कवि अपनी जननी माँ को मानता है जिनका देहावसान डेढ़ वर्ष पूर्व हुआ था । वृद्धावस्था में आई शारीरिक कमजोरी और बिस्तर से न उठ सकने की लाचारी ही उनकी मृत्यु का कारण बनी। कवि ने अपनी माँ के अन्तिम दिनों में उनकी खूब सेवा की थी और माँ की सेवा करते हुए कवि ने माँ के साथ नामक एक वृहद काव्य भी लिखा था जो कि सुप्रसिद्ध प्रकाशन संस्थान रुद्रा पब्लिकेशन्स से प्रकाशित भी हुआ। सच्चा तीर्थ नामक इस गीत-संग्रह के प्रकाशन से कवि जन-समाज से यह उम्मीद करता है कि इसे पढ़कर भारत और विश्व के युवकों में अपनी जननी माँ के प्रति गहरा आदर-सम्मान श्रद्धा और आज्ञाकारिता का भाव पैदा होगा। वे अपनी माँ को पूज्य समझकर उसकी दुःख तकलीफ और वृद्धावस्था में मदद करेंगे तथा माँ के प्रति अपनी सच्ची निष्ठा और आस्था से उसके सफलता प्रदायक आशीषों को प्राप्त करेंगे।
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