Sadaneera-29 । सदानीरा-29 [ बहुभाषिकता ]

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एक पत्रिका का एक विशेष अंक निकालना एक व्यक्ति के बस की बात नहीं होती है। तब तो और भी नहीं जब ‘सदानीरा’ के अंक सामान्य नहीं रह गए हैं। वे एक अरसे हिंदी में अछूते विषयों पर एकाग्र होकर विशेष हो रहे हैं। इस प्रसंग में अगर अंक ‘बहुभाषिकता’ पर केंद्रित हो तो मसला और भी जटिल हो जाता है। मूल कवि या लेखक के लिखे के बाद उसका अनुवाद और फिर जाकर उसमें अंतर्निहित जटिलताएँ... इन सबके प्रकाश में यह कहना उचित ही होगा कि बहुभाषिकता पर अंक लाना चुनौतीपूर्ण है। भाषा की सीमा पार करने के बाद लिखे को एक सूत्र में पिरोना भी आसान नहीं है क्योंकि इस अंक के लिए हर लिखने वाले को एक आज़ादी थी कि उन्हें जो लिखना हो वह लिखें क्योंकि जिन्होंने भी इस अंक के लिए लिखा—उनके लिखे पर सदानीरा को भरोसा था। एक छोटा-सा आइडिया था कि भारत एक बहुभाषिक देश है और हम सब कमोबेश बहुभाषिक लोग हैं। हम अपने बढ़ते रहने के क्रम में यह बात भूल जाते हैं और हमें लगता है कि दो या तीन भाषाएँ बोलना कठिन काम है। इस कठिनता को रूप-आकार देने की एक कोशिश है सदानीरा का यह बहुभाषिकता अंक।
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