सफर उजाले में (विचार-काव्य दर्शन) ’न कवितान गीतिकान राग सुनाता हूं बस अंधेरों के खि़लाफ एक चिराग ज़लाता हूं...।’ बदलते हैं लोग तो बदलता है समाज। बदलते हैं समाज तो बढ़ता है देश का गौरव। और इस जरुरत को पूरा करती है एक सुंदर किताब। सफर उजाले में नामक किताब-कृति इसी कड़ी में जुड़ती एक सफल प्रयास है। समाहित अनमोल विचार वाह्य जगत को जिम्मेदार बनाने की प्रयासरत दिखती है। वहीं दूसरी ओर भावप्रद कविताएं आदमी को भीतर तक मथते हुए अनुप्राणित करती है। इस तरह किताब में वाह्य एवं अंतःकरण को छूने का संदर्भ निवेदित है। यदि कलम आपके दिल-दिमाग को स्पर्श करने में सार्थ हो सकी तो मैं अपने आप को धन्य समझूंगा। धन्यवाद! सरयुग पंडित’सौम्य’ 9199515085
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