<p>इस किताब का शीर्षक ’सफ़हे ख़्वाब के’ अपने-आप में परिभाषित तथा भवनापूर्ण है। मैंने अपने काव्य-संग्रहण में काफी सरल तथा बोलचाल में उपयोग किए जाने वाले आम शब्दों का उपयोग किया है। यह काव्य-संग्रहण एक तरह से मेरी स्मृतियों का संग्रहण है। मैंने ख्वाबों में जो भी देखा या मन में जो भी ख्याल आए उन्हें कागज़ पर उतारने की कोशिश की है। मैंने बंदिशों में बिना रहकर स्वच्छंद होकर तथा आज के जमाने के परिवेश को दृष्टिगत रखकर लिखा है इसलिए कई कविताओं में पाठकों को घरेलु सामग्रियां जैसे ’स्नैक्स’ ’आईब्रो’ ’खिड़कियां’ आदि शब्द भी मिलेंगी जो मन के भाव को स्वतः प्रस्तुत करती मिलेंगी। इसमें प्रेमी-युगल बिछड़े प्रेमी नव-विवाहिता दाम्पत्य जीवन सभी भाव के लिए कविताएं हैं। मैंने अपने चित्रकार होने का भरपूर फायदा उठाते हुए काव्य-संग्रहण में जीवंत काव्यों जैसे ’मेरे आफिस का कारिडोर’ ’ट्रैफिक हवलदार’ ’सांझ’ ’अलसाया सूरज’ में सजीव चित्रण किया है जो पाठकों को ऐसा प्रतीत कराएगा मानो वे किसी पर्दे पर सजीव पिक्चर देख रहे हों। </p><p> कई कविताओं में आम बोल-चाल में उपयोग होने वाले उर्दू लफ्जों का भी सटीक उपयोग है। इसके लिए किसी डिक्शनरी की आवश्यकता नहीं होगी। यह काव्य संग्रह सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिए है। इस संग्रह की प्रथम कविता ’मां’ शब्द से प्रारम्भ की गई है जो मैंने अपनी प्रथम गुरू मां को समर्पित किया है। वहीं प्रेम भरी कविताएं कहीं-ना-कहीं अपनी अर्धांगिनी को केन्द्रित कर लिखा है।</p>
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