सरहपा और तिलोपा क्रियाकांड और अनुष्ठान को धर्म नहीं कहते। तुम पूछते होः कृपया बताएं कि उनके अनुसार धर्म क्या है?'वैसा चैतन्य जिसमें न कोई क्रियाकांड है न कोई अनुष्ठान है न कोई विचार है न कोई धारणा है न कोई सिद्धांत है न कोई शास्त्र है। वैसा दर्पण जिसमें कोई प्रतिछवि नहीं बन रही--न स्त्री की न पुरुष की न वृक्षों की न पशुओं की न पक्षियों की। कोरा दर्पण कोरा कागज कोरा चित्त...वह कोरापन धर्म है। उस कोरेपन का नाम ध्यान है। उस कोरेपन की परम अनुभूति समाधि है। और जिसने उसकोरेपन कोजाना उसने परमात्मा को जान लिया।ओशोपुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदुः• सिद्ध सरहपा और तिलोपा का संदेश क्या है?• योगको प्रेमपूर्वक जीने का क्या अर्थ है?• भोग में योग योग में भोग• समूह-मनोचिकित्सा प्रयोग और ध्यान• विवाहित जीवन के संबंध में आपके क्याखयाल हैं?• इस जगत में सर्वाधिक आश्चर्यजनक नियम कौन सा है?
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