इन कहानियों में कहीं श्वेत हिमखण्डों से निकली गंगा जैसा पावनप्रेम है तो कहीं रास लीला की प्रत्यक्षदर्शी उसका हिस्सा होते हुए भी निर्लिप्त यमुना की चंचल धाराएं हैं तो कहीं ऊपर से सूखीसपाट दिखती धरा के तले भूमिगत उपस्थिति दर्ज कराती सरस्वती सी अदृश्य धाराएं। कहीं किनारों में बंधकर खामोशी से बहती नदी से शान्त पात्र हैं तो कहीं सभी तटबन्धों को तोड़कर स्वच्छंदता से बहती चंचल धारा से अजादी पसन्द पात्र हैं कहीं कच्चे सूत के धागों से स्वाभिमान की डोर को बुनते हुए कहीं उपेक्षित मन मन्दिर तो कहीं अहंकार के ज्वार से फुफकारता दिलसमन्दर तो कहीं मानव मन की वो अनदेखी कन्दराएं हैं जिन पर यदाकदा ही सूर्यकिरणें पड़ती हैं बस इन्हीं सब प्रतिबिम्बों की छवि को अपने दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने का एक प्रयास है जिसके प्रति आप सभी के स्नेह की साध है उम्मीद है आस है !!!!
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