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About The Book
Description
Author
अब्दुल बिस्मल्लाह नई पीढ़ी के बहुचर्चित और बहुमुखी प्रतिभा-सम्पन्न रचनाकार हैं. झीझीनी बीनी चदरिया नामक उपन्यास के लिए इन्हें सोवियत भूमि नेहरु पुरुस्कार से भी सम्मनित किया जा चुका है समर शेष है अब्दुल बिस्मल्लाह का कथात्मक उपन्यास है। कथा नायक है सातआठ साल का मत्र्विहीन बच्चा जो कि पिता के साथसाथ स्वयं भी भारी विषमता से ग्रसित है. लेकिन पिता का असामयिक निधन उसे जैसे विकट जीवन-संग्राम में अकेला छोड़ जाता है. पिता के सहारे उसने जिस सभ्य और सुरक्षित जीवन के सपने देखे थे वे उसे एकाएक ढहते हुए दिखाई दिए. फिर भी उसने सहस नहीं छोड़ा और पुरषार्थ के बल पर अकेले ही अपने दुर्भग्य से लड़ता रहा. इस दौरान उसे यदि तरह-तरह के अपमान झेलने पड़े तो किशोरावस्था से युवावस्था की ओर बढ़ते हुए एक युवती के प्रेम और उसके हृदय की समस्त कोमलता का भी अनुभव हुआ.लेकिन इस प्रक्रिया में न तो वह कभी टूटा या पराजित हुआ और न ही अपने लक्ष्य को कभी भूल पाया. कहने की आवश्यकता नहीं कि विपरीत स्थितियों के बावजूद संकल्प और संघर्ष के गहेरे तालमेल से मनुष्य जिस जीवन का निर्माण करता है यह कृति उसी की अभिवयक्ति है.