प्रभु श्री राम जी की कृपा से धार्मिक स्थलों के यम नियम और सिद्धान्तों का मनन और अनुकरण करते हुए समर्पण को हिन्दी साहित्य दर्शन अभिप्रीति में पिरोकर अभिप्राय प्रस्तुति की हार्दिक अभिलाषा है। आत्मविद्या तप और कर्मफलवाद के मूल सिद्धान्त के साथ ज्ञान के साधन सम्बुद्धि और सहज ज्ञान एवं संस्कार वद्ध जीवन समर्पण को मानव कल्याण की धरा मानते हैं। रचनाकार का जीवन दर्शन को समय की तुला पर रखकर विज्ञान - शोध में समेंटकर साहित्यिक हिन्दी के उत्थान में “पद्य की नूतन विधा” को वर्णांकित कर आलोकित करने का चिरकालिक प्रयास है। अल्पज्ञ का विश्वास है कि यह वर्णांकित काव्य संग्रह मानवीय मूल्यों में ऊर्जा भरेगा तथा सभी रचनायें सभ्य समाज के स्वस्थ जागरण हेतु वरदान सिद्ध होंगी। इसी उत्कट अभिलाषा के साथ सच्चे मूल्य को दर्शाती रचनाकार की वर्णांकित पंक्तियाँ बहुत कुछ कह रही हैं। ममता अमृत ममता मोती ममता मन की प्यास। कष्ट कोठरी ममता धोती कालिख ग्रसत प्रकाश॥ ममता में विश्वास समाहित ममता ही भूगोल। सम्प्रदाप्रद त्याग परमहित नहि विपदा बहु मोल॥ अल्पज्ञ स्वल्प मनसा वचन ममता न्यारी चादर। जिन जिन ने प्रेम से ओढ़ी मिले स्नेह भर आदर॥ (ममता से)
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