ओशो सरस संत और प्रफुल्ल दार्शनिक हैं। उनकी भाषा कवि की भाषा है। उनकी शैली में हृदय को द्रवित करने वाली भावना की उच्चतम ऊंचाई भी है और विचारों को झकझोरने वाली अकूत गहराई भी लेकिन उनकी गहराई का जल दर्पण की तरह इतना निर्मल है कि तल को देखने में दिक्कत नहीं होती। उनका ज्ञान अंधकूप की तरह अस्पष्ट नहीं है। कोई साहस करे प्रयोग करे तो उनके ज्ञान सरोवर के तल तक सरलता से जा सकता है।'
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