सच से वास्ता था कोई दिखावा नही था ज्ञान था तो सम्पर्क भी बड़ा था मित्रता बड़ी थी गरीबी थी तो थी यह स्वीकार करने मे समर पति को कोई गुरेज नही था लोग उन्हे भुरकुस पट्टी वाले कहते थे तो भी उन्हे क्रोध नही था क्योकि यह सच था सम्हरी ने सच पालना सीख लिया था संकल्प था गरीबी से बाहर निकलना है लेकिन झूठ बेईमानी मक्कारी या ऐसा कुछ भी जिसे अनफेयर मीन्स कहा जाय उसका सहारा नही लेना है ईश्वर ने भेजा है तो कोई तो कारण बनाया होगा कोईतो रास्ता दिया होगा। सम्हरी एक पूरी हो चुकी जीवन की कथा है समाप्त हो चुके जीवन को बारह वर्ष बाद फिर जीने का प्रयास किया गया है तरक्की सिर्फ यह नही है कि बैंक बैलेन्स. कितना छोड़ा गया मकान कितने बनाए गए बल्कि तरक्की यह है कि जीते जी मानवीय मूल्यो का कितना पालन किया गया सम्हरी की दिवानगी थी ईमानदारी सत्यता परस्पर सहकारिता इसमें नफा नुकसान न देखते हुए जीवन जी लेना यही पुस्तक का विषय है नायक के चरित्र को शब्दो के माध्यम से पुनः जीना ही उपन्यास सम्हरी का उद्देश्य है ।
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