हम चाहते हैं कि ‘समकाल’ साहित्य संघर्षशील समाज और मेहनतकश जनता की संस्कृति की मुखर आवाज बने वैज्ञानिक और तार्किक जीवन पद्धति को विकसित करने में अपना योगदान दे और उन रचनाकारों/रचनाओं तक पहुंचने का प्रयास करे जो एक वैश्विक मानवीय समाज की कल्पना को साकार करना चाहते हैं। एक ऐसा मानव कुटुम्ब जहाँ जाति धर्म समुदाय और भाषा की विविधता उसके सौहार्द पूर्ण विकास में कोई बंधन न हो। ‘समकाल’ एक ऐसी पत्रिका बने जो देश की सीमाओं को लांघते हुए मानवता के पक्ष में खड़ी हो सके। हमें पता है कि आप स्वयं भी यही चाहते हैं। ‘समकाल’ में नये-पुराने स्थापित नवोदित सभी जन पक्षधर रचनाकारों का स्वागत है।