बदलते समाज में भेदभाव के बदलते स्वरूप की जो महीन परतें बन रही हैं सामाजिक न्याय के दंश और कुंठाये समाज को झकझोर रहे हैं उनका मनोवैज्ञानिक समाधान प्रस्तुत करना समय व समाज की बड़ी जरूरत है। अतः दलित साहित्यकारों के पास पीड़ा व आक्रोश से आगे बढ़कर बड़े सामाजिक एवं मानवीय सरोकार का उत्तरदायित्व है जिसे हर हाल में दलित साहित्य को ही निभाना है। निश्चित रूप से दलित साहित्य में अनुभव व दृष्टिजन्य अभिनव लेखन हो रहा है तथा आज दलित साहित्य बहुतायत में लिखा व पढ़ा जा रहा है। दलित साहित्य के इस विशेषांक में विद्वान लेखकों के समसामयिक व ज्वलन्त मुद्दों पर लेख दिए जा रहे हैं तथा कहानियां व कविताएं भी नए भावबोध के साथ नयी भूमि की तलाश करती हई दलित साहित्य को मजबूती से आगे बढ़ने की प्रबल आशा जगाती हैं यह अंक सुधि पाठकों के हाथ में है जिनकी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं का सदैव स्वागत व प्रतीक्षा रहेगी। -राजेशपाल
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.