Sangh Aur Swaraj (Punjabi Edition)


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About The Book

पिछले कुछ समय से राजनीतिक मजबूरियों के कारण वामपंथी और तथाकथित धर्मनिरपेक्षत दल स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका के विषय में दुष्प्रचार कर रहे हैं और जनसेवा में इसके बेहतरीन रिकॉर्ड पर कीचड़ उछाल रहे हैं। यह पुस्तक हमें बताती है कि संघ अपने जन्म से ही स्वराज के प्रति समर्पित था। डॉ. हेडगेवार का जीवन और वह शपथ जो स्वयंसेवक लेते थे स्वतंत्रता संग्राम के प्रति समर्पण को स्पष्ट रूप से दिखाते हैं। इस स्वतंत्रता को स्वराज में बदलने के लिए भारत को अनुशासित और साहस रखनेवाले युवाओं की आवश्यकता थी जो राष्ट्र के प्रति समर्पित हों। ब्रिटिश दस्तावेज स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि वे स्वतंत्रता संग्राम में संघ की बढ़ती ताकत को लेकर सतर्क थे। स्वतंत्रता का आंदोलन 15 अगस्त 1947 को ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ (भाग्य के साथ मुलाकात) से समाप्त नहीं हुआ बल्कि शुरू हुआ अंतहीन अँधेरी रातों का भयावह सिलसिला जब सुरक्षाबलों के अतिरिक्त सबसे संगठित बल के रूप में संघ के कार्यकर्ताओं ने तबाह हुई लाखों लोगों की जिंदगी से जो कुछ बचा सकते थे उसके लिए अपने प्राणों को खतरे में डाला। यह फैसला भारत के लोगों और इतिहास को करना है कि साहस की ऐसी काररवाई देशभक्ति थी या सांप्रदायिक। लेखक अन्य तथ्यों पर प्रकाश डालते हैं जिनके कारण हमें स्वतंत्रता मिली और यह रेखांकित करते हैं कि स्वाधीनता किसी एक आंदोलन या काररवाई का परिणाम नहीं थी बल्कि एक लहर के साथ धीरे-धीरे बढ़ी जिसका निर्माण भारत के महान् आध्यात्मिक गुरुओं के कारण शुरू हुए सांस्कृतिक पुनर्जागरण से हुआ था।.
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