साँझ की कलम से..एक शाम है सुकून की सांझ के साथ। नए नए विषय के साथ बहुत कुछ सीखने को मिलता है।साँझ की पृष्ठभूमि पर आकर सारी मानसिक उलझने उड़न छू हो जाती हैं।सांझ की बेला और सांझ का पटल दोनों एक दूसरे के पूरक हैं ।शाम होते ही नए विचारों को व्यक्त करने की आकुलता होती है बहुत कुछ सीखते हैं हम यहां एक दूसरे के सानिध्य में। अपनी तारीफ़ सुनना सभी को अच्छा लगता है लेकिन दूसरों की तारीफ़ में जो मज़ा है उसकी बात ही अलग है। हिंदी भाषा से अनभिज्ञ होने पर भी अपने भाव को बखूबी शब्दों में ढालते हैं।सांझ में अपनापनस्नेह दुलार जो सदस्यों को मिलता है और कहीं नहीं।
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