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About The Book
Description
Author
गोबरधन पूरे जनवासे में दूल्हा ढूँढ़ता फिरा। कहीं नहीं दिखा दूल्हा। दिखा तो एक अधेड़ रोएँदार पहलवान। गाँव के नाई से मुश्कें लगवाता हुआ और गुच्छेदार मूँछों के बीच चिर्रचिर्र हँसता हुआ।पाँव जम गए जहाँकेतहाँ। आँखें किसी भयावने कोटर पे टँग सी गईं। तभी ‘‘अबे लड़के! लपक के दो कसोरे बूँदी तो लाना...’’वह बदहवास हाँफते हुए वापस मामा की ड्योढ़ी तक भागता चला आया था। चीखने हुमसकर रो पड़ने से होंठ सिल गए।आँगन में सुहाग वारा जा रहा था मैना जिज्जी पर। सुहागिनों के आँचल के साए में वह सिर झुकाए पीले कनेर सी मुसकरा रही थी। औरतें सुहाग गा रही थीं-‘अरे घुड़सवार! कौन है तू! जानता नहीं पानफूल सी बहन मेरी ऐसे ही तेरे हवाले कर दूँ’ भली कि अंदर से भइया की बहन बोली ‘न भइया मुझे इसी घुड़सवार के साथ जाने दे। मेरे तो भाग्य का नियंता यही तू अब रोकना नहीं मुझे।’-इसी संग्रह से