*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
₹438
₹550
20% OFF
Hardback
All inclusive*
Qty:
1
About The Book
Description
Author
सरफरोशी की तमन्ना भगत सिंह (1907-1931) का समय वही समय था जब भारत का स्वतंत्रता संग्राम अपने उरूज की तरफ बढ़ रहा था और जिस समय आंशिक आजादी के लिए महात्मा गांधी के अहिंसात्मक निष्क्रिय प्रतिरोध ने लोगों के धैर्य की परीक्षा लेना शुरू कर दिया था। भारत का युवा वर्ग भगत सिंह के सशस्त्र विरोध के आह्नान और हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के आर्मी विंग की अवज्ञापूर्ण साहसिकता से प्रेरणा ग्रहण कर रहा था जिससे भगत सिंह और उनके साथी सुखदेव और राजगुरु जुड़े थे। ‘इंकिलाब ज़िन्दाबाद’ का उनका नारा स्वतंत्रता-संघर्ष का उद्घोष बन गया था। लाहौर षड्यंत्र मामले में एक दिखावटी मुकदमा चलाकर ब्रिटिश सरकार द्वारा भगत सिंह को मात्र 23 साल की आयु में फांसी पर चढ़ा दिए जाने के बाद भारतवासियों ने उन्हें उनके युवकोचित साहस नायकत्व और मौत के प्रति निडरता को देखते हुए शहीद का दर्जा दे दिया। जेल में लिखी हुई उनकी चीजें तो अनेक वर्ष उपरान्त आजादी के बाद सामने आईं। आज इसी सामग्री के आधार पर उन्हें देश की आजादी के लिए जान देने वाले अन्य शहीदों से अलग माना जाता है। उनका यह लेखन उन्हें सिर्फ एक भावप्रवण स्वतंत्रता सेनानी से कहीं ज्यादा एक ऐसे अध्यवसायी बुद्धिजीवी के रूप में सामने लाता है जिसकी प्रेरणा के स्रोत अन्य विचारकों के साथ मार्क्स लेनिन बर्ट्रेंड रसेल और विक्टर ह्यूगो थे और जिसका क्रान्ति-स्वप्न अंग्रेजों को देश से निकाल देने भर तक सीमित नहीं था बल्कि वह उससे कहीं आगे एक धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी भारत का सपना सँजो रहा था। इसी असाधारण युवक की सौवीं जन्मशती के अवसर पर कुलदीप नैयर इस पुस्तक में उस शहीद के पीछे छिपे आदमी उसके विश्वासों उसके बौद्धिक रुझानों और निराशाओं पर प्रकाश डाल रहे हैं। यह पुस्तक पहली बार स्पष्ट करती है कि हंसराज वोहरा ने भगत सिंह के साथ धोखा क्यों किया साथ ही इसमें सुखदेव के ऊपर भी नई रोशनी में विचार किया गया है जिनकी वफादारी पर कुछ इतिहासकारों ने सवाल उठाए हैं। लेकिन इसके केन्द्र में भगत सिंह का हिंसा का प्रयोग ही है जिसकी गांधी जी समेत अन्य अनेक लोगों ने इतनी कड़ी आलोचना की है। भगत सिंह की मंशा अधिक से अधिक लोगों की हत्या करके या अपने हमलों की भयावहता से अंग्रेजों के दिल में आतंक पैदा करना नहीं था न उनकी निर्भयता का उत्स सिर्फ बन्दूकों और जवानी के साहस में था। यह उनके अध्ययन से उपजी बौद्धिकता और उनके विश्वासों की दृढ़ता का मिला-जुला परिणाम था।.