इस जीवनी में साहिर लुधियानवी की ज़िंदगी का क्रमिक विकास दिखाया गया है–एक डरपोक बच्चा हालातों के थपेड़ों का सामना करते हुए उर्दू शायरी में नाम कमाने के साथ फिल्मी गीत-लेखन में सफलता के पायदान पर पहुंच जाता है । विकट परिस्थितियों में फर्श से उठकर वह शोहरत और कामयाबी के अर्श को छू लेता है।अपने अंतिम समय तक वह बड़े से बड़े प्रोड्यूसर डायरेक्टर संगीतकार बल्कि सरकार की भी परवाह नहीं करता।और अपने उसूलों की बदौलत मायानगरी बंबई (मुंबई) में अदब का परचम लहरा कर साबित करता है कि अल्फ़ाज़ हमेशा साज़ और आवाज़ से अव्वल हैं। ... ...काग़ज़ पर उतरने से पहले हर कृति बरसों तलक लेखक के दिलो-दिमाग़ में घुमड़ती रहती है। इस कृति को लिखने में मुझे साढ़े तीन दशक लगे हैं । ...साहिर लुधियानवी की इस शोधपरक जीवनी को अपने मुक़ाम तक ले जाने में अनेक भाषाओं की पुस्तकों पत्रिकाओंसमाचारपत्रों यूट्यूब और जनसंचार के विभिन्न माध्यमों की मैंने सहायता ली है। अपरिहार्य कारणों से मैं उन सभी के नाम यहां नहीं लिख पाया। उन सबके प्रति भी मैं बहुत आभारी हूँ। अपने प्रयास में मैं कितना सफल रहा हूँ इस बात का निर्णय तो सुधी पाठक ही कर पाएंगे… -डॉ. रतन लाल महेंद्रगढ़ी
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