यह कहानी है क्षितिज की जो अपने परिवार और दोस्तों की टोली के साथ वंशपुर में रहता है। दब्बू स्वभाव के क्षितिज के पड़ोस में आता है एक दिलचस्प मेहमान जो जल्द ही पूरे वंशपुर की आँखों का तारा बन जाता है। वहाँ के प्राचीन सूर्य मन्दिर में संक्रांति पर्व पर हर साल एक बड़ा सा मेला लगता है। मगर इस साल हो गयी है एक अनहोनी! सूर्यदेव के अनमोल कुण्डल चोरी हो गये हैं और इल्जाम आया है पुजारी जी पर!! क्षितिज ने अपनी सूझबूझ से किस तरह असली चोर की पहचान की? क्षितिज को सुनाई देने वाली अजीब आवाजों और मन्दिर के भिखारी में क्या सम्बंध था? क्या थी उन कुण्डलों की खासियत जिससे वंशपुरवासी भी अंजान थे? जानने के लिये पढ़ें “सतरंगे कुण्डल”...
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