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About The Book
Description
Author
रचनाकार के लेखन का आरंभ बहुधा किशोरावस्था में होता है... बाल्यकाल में तो ईश्वरीय वरदान पाए कवि ही लिखते हैं। प्रायः कवि की आरंभिक रचनाओं में किशोर-स्वप्न कल्पनाएँ नव पल्लवित कल्पित प्रेम-प्रणय प्रतिक्षित नवांतुक प्रणय के प्रति उल्लास उत्कंठा की प्रधानता रहती है। समय कविता को सँवारने में लगा रहता है। कवि की आयु के साथ-साथ कविता की आयु भी बढ़ती है। उसके कोष में जीवन के कठोर धरातल के अनुभव बढ़ जाते हैं दार्शनिक स्तर पर भी वैचारिक परिपक्वता बढ़ती है। कवि प्रौढ़ होता है तो रचनाएँ भी प्रौढ़ आकार लेने लगती हैं। अब कविता की परिधि परिवार से बाहर निकलकर समाज-राष्ट्र प्रकृति या समय-काल की ओर अग्रसर होती है। इसके पश्चात् आरंभ होती है कवि की अंतर्मुुखी यात्रा। अब कविता संसार से परे नियंता की खोज में उतर आती है। यह संग्रह प्रख्यात लेखिका रेणु राजवंशीजी के विगत पचास वर्षों में लिखी कविताओं का पठनीय संकलन है। इस दीर्घ काव्य-यात्रा से उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना की झलक मिलती है उनके राष्ट्रीय और मानवीय सरोकारों की बानगी मिलती है।