सत्य की कई परते होती हैं। इन परतों को हर जीव अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार खोल पाता है। सिद्ध पुरुष का सत्य वो नही है जो साधारण जन का है क्योंकि दोनो की मानसिक अवस्था चेतना के अलग अलग तल पर केंद्रित है। आज मानव समाज और देश जिस दशा और दिशा में आगे बढ़ रहे हैं उनके कारकों और संभावित लक्ष्यों को टटोलती एक कविता संग्रह।
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