भारतीय संस्कृति और धर्म के संवाहक श्रीकृष्ण सर्वश्रेष्ठ और सर्वोत्त्म पुरुष होते हुए भी परब्रह्म परिपूर्ण अलौकिक जीवन इस धरती पर अधर्मियों और दुष्टों का विनाश करने वाला अपनी बाल-सुलभ क्रीड़ाओं से लेकर एक नीति-निपुण राजनीतिज्ञ तथा एक महान योद्धा प्रमाणित हैं। योग को धरती को अभिभूत कराने वाले योगेश्वर के रूप में श्रीकृष्ण की ख्याति अजर-अमर है। श्रीकृष्ण ने ही सर्वप्रथम ‘ज्ञानयोग’ ‘कर्मयोग’ ‘भक्तियोग’ से धरा को परिचित कराया था। द्विस्तरीय कर्मयोग के प्रतिपादित सिद्धांत- एक निःस्वार्थ कर्म तथा दूसरा निःस्वार्थ ‘राजयोग-राजकर्म’ आयाम हैं। निःस्वार्थता उनका सर्वोच्च आसन है। समस्त संसार में श्रीकृष्ण का चरित्र सर्वग्राह्य और सर्वमान्य स्वीकार किया जाता है। श्रीकृष्ण शुद्ध प्रेम के प्रतीक हैं। जो भी उनसे प्रेम करता है उसके वे दास और सखा हैं। ऐसे दास कि भक्त के लिए नंगे पाँव दौड़े चले आएँ और ऐसे सखा कि अपने मित्र के लिए तीनों लोकों की सम्पदा एक क्षण का भी विलम्ब किए बिना लुटा दें।
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