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About The Book
Description
Author
गायों के गलियारे से गुजर चुकने पर सीढ़ियाँ चढ़ती हुई सवित्तरी उसके बिलकुल पास आ गई तो मीता बोली “कहो कैसी हो? तुम्हारा नाम सवित्तरी है ना?” “हाँ बहूजी!मगर आपके मकान-मालिक भट्टाचार्जी साहब हैं ना जिनकी फटकिया सड़क की तरफ से पड़ती है—बहुत मजाकिया आदमी हैं। कहते हैं कि सवित्तरी का मतलब सूरज की किरन होता है। कहते हैं—‘हाम तुमको किरन कुमारी बोलेगा।’ सड़क पर जाती देखेंगे तो जोर से आवाज लगाएँगे कि ‘ए किरन कुमारी किधर जाता है रे!’ पास जाऊँगी तो बिलकुल धीमे से कहेंगे—‘हमारे वास्ते एक ठो कोप चा बनाने को सकती हो?’ चाय बनाके दूँगी तो बोलेंगे—‘तुम बहोत रसगुल्ला लड़की हो कभी हम तुमको ‘हौप्प’ करके खा जाएगा।’ आपने बंगाली मोशाय को देखा या नहीं?” —इसी उपन्यास से ‘सवित्तरी’ एक ऐसा उपन्यास है जिसमें एक निर्धन और समाज द्वारा उपेक्षित परिवार में जनमी युवती सवित्तरी की मर्मस्पर्शी कहानी है। वह किसी को अपने पास तक आने नहीं देती फिर भी समाज के कर्णधारों द्वारा वह छली जाती है और उसका जीवन पतन की ओर उन्मुख हो जाता है। वास्तव में ‘सवित्तरी’ हमारे समाज का वह घिनौना रूप हमारे सामने प्रस्तुत करनेवाला उपन्यास है जिसकी कल्पना मात्र से हम सिहर उठते हैं उद्वेलित हो जाते हैं।