कुछ पुस्तकों को पढ़ना इस कारण से आवश्यक हो जाता है क्योंकि वे जीवन के विभिन्न आयामों के प्रति एक नवीन दृष्टिकोण प्रदान करती हैं। इस पुस्तक के विषय जीवन के ऐसे आयामों को छूते हैं जिन पर चिंतन करना वर्तमान समय की प्राथमिक आवश्यकता सा प्रतीत होता है। यह पुस्तक हमारे आज के विकास और प्रगति के बीच उठे हुए विरोधाभास पर कुछ ठोस सवाल उठाती है और उनके समाधान पर लेखिका के मन्तव्य भी स्पष्टता के साथ प्रस्तुत करती है। यह सारे लेख सहचिन्तन के परिणाम है और यह सहचिन्तन की गोष्ठियों में रखे गए हैं। इससे यह परिक्षित हो जाता है कि यह पुस्तक समाज के सचिंतन वर्ग को अवश्य ही एक नई सक्रियता प्रदान करेगी इसलिए चेतना प्रसार के दृष्टिकोण से यह पुस्तक बहुत बड़ी सख्याँ में प्रसारित और विवेचित होनी चाहिए। विशेष कर नए चिंतन के सूत्र धार अध्यापक वर्ग के लिए यह पुस्तक शिक्षा का एक नया मार्ग प्रशस्त करती है। वर्तमान विकास की विसंगतियां नित्य नए आयाम में उभर कर हमारे विकास के परिणाम ज्यों बौने बनाने लगी हैं और हम यह सब देखते हुए भी जैसे संवेदनाहीन हो गए हैं। अब हमें घेरने लगी हैं वैयक्तिक चिंताएं जो आने वाले समय के लिए किसी भी भांति शुभ नहीं लगतीं। समय जैसे हर कदम पर हमसे तीखे सवाल पूछ रहा है और हमें ज़िम्मेदारी के साथ जवाब देने को विवश कर रहा है। सविता जी के मनीषापूर्ण मंतव्य मंथन मंच के सहचिंतन और गंभीर सामूहिक दृष्टिकोण की खोज़ में अग्रणी और सहायक रहें हैं। सरल भाषा में पूरी गंभीरता के साथ रचित चयनित और सम्पादित ये लघु कथ्य पाठकों को अवश्य ही अत्यंत रोचक और प्रेरक लगेंगे।
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