मैं मना करता रहा पर मेरा हठी मन मानने को तैयार नहीं समझ नहीं आ रहा था कि कैसे समझाऊँ उसे। आखिर उहापोह की स्थिति में जीत हठी मन की ही हुई। फिर क्या था ! चल पड़ी कलम पंक पालित भक्ति नायिका शबरी की ओर जिनका शब्द बीज बंजर मस्तिष्क पर कबके न पड़ गया था। शबरी राम की शबरी... बेर वाली शबरी.... आखिर जीत शबरी की ही हुई। क्या लिखूँ कैसे लिखूँ ! बंजर भूमि में बीज प्रस्फुटित भी नहीं हो रहा था। तना शाख डाली टहनी फूल पत्ते फल कब लगते... बस... सारा आलम जब सो जाता तब मेरी कलम जग जाती है। निचोड़कर मन मस्तिष्क से एक शब्द नया गढ़ जाती हजब सारा आलम सो जाता तब मेरी कलम जग जाती है।निचोड़ कर मन मस्तिष्क से एक शब्द नया गढ़ लाती है।
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.