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About The Book
Description
Author
शब्दसाबुन ज्ञान के लिए व्याकरण का ज्ञान अत्यन्त ही आवश्यक है। पुराकाल से प्रचलित अनेक व्याकरणों में सर्वाधिक लोकोपयोगी एवं सर्वधान्य व्याकरण महर्षि पाणिनि द्वारा विरचित अष्टाध्यायी ग्रन्थ है। इस अष्टाध्यायी को आधार बनाकर परवर्ती विद्वानों ने अनेक महनीय ग्रन्थों की रचना की जिनमें भगवान पतञ्जलि विरक्षित 'महाभाष्य' कात्यायन मूनि विरचित 'वार्तिकग्रन्य तथा आचार्य भर्तृहरि विरचित 'वाक्यपदीय प्रमुख ग्रन्थ है। कालान्तर में अष्टाध्यायी के सूत्रों को प्रकरणों में विभक्त करके लक्ष्यानुसारी प्रक्रिणवन्यों की रचना हुई जिनमें मट्टोजिदीक्षित विरचित वैयाकरचसिद्धान्तकौमुदी इत्यादि अनेक प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं। इन सभी व्याकरण सम्प्रदाय के ग्रन्थों का प्राचीन काल से गुरुकुलों में तथा विद्यापीठों में निरन्तर अध्ययन अध्यापन हो रहा है परन्तु काशी करे जो परम्परा है वह अत्यन्त विलक्षण एवं अनुकरणीय है।