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About The Book
Description
Author
अपने वजूद की चौखट पर खड़ा दरबान हूँ मैं इस हालात-ए-हाज़रा पर खुद भी हैरान हूँ मैं। ढूँढता हुआ मैं हर मंजिल-ए-मक़सूद तक गया नामालूम नूर की बूँद हूँ या गुमशुदा सामान हूँ मैं। मधुर-मौन निशब्द-निमंत्रण तुमने दिया था दिनचर्या में अंतराल नियोजन हमने किया था निगाहों से संवाद का अंदाज़ गर तुम्हारा था चिकोटी पर मरहमी अंदाज़ तो हमारा था. एक नया किरदार ग़ज़ल में आना चाहे बिखरा मोती माला में गुँथ जाना चाहे. तेरे लबों पे उतरी जो मुस्कान मधुर सी लगता है ज्यूँ मेरे लबों तक आना चाहे. “शादाब” तेरी आग़ोश में इतना सुकून है ये किरदार तेरी बाहों में सो जाना चाहे.