*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
₹307
₹395
22% OFF
Hardback
All inclusive*
Qty:
1
About The Book
Description
Author
गिरीश कारनाड के नाटकों में मन की तहें खुलती हैं। उनके पौराणिक कथा-सूत्रों पर आधारित नाटकों में पाठकों-दर्शकों ने मनुष्य की आदिम वृत्तियों उसकी अकुंठ जिजीविषा वासना नैतिक वर्जनाओं में कुलबुलाते और उनके सच को उघाड़ते आत्म को अनेक रूपों में देखा है।यह उनका आधुनिक परिवेश में घटित नाटक है। इसमें इक्कीसवीं सदी के भारत की एकदम नई पीढ़ी और उसके पीछे अब भी खड़े पुराने भारत की छवियाँ हैं। इस लिहाज़ से इस नाटक में वह एक भिन्न आस्वाद की रचना करते हैं। लेकिन व्यक्ति के भीतर और बाहर तथा समाज के दैनिक व्यवहारों और नैतिक प्रतिज्ञाओं के बीच की फाँक को प्रकाशित करने की उनकी लेखकीय शपथ यहाँ भी उतनी ही तीव्र है।यह नाटक हमें बताता है कि अब भी हमारा जीवन दो समानान्तर यथार्थों के साथ ही सम्भव है कि आज इंटरनेट और ग्लोबल गाँव के वातावरण में भी हम वह पारदर्शिता प्राप्त नहीं कर पाए जिसका सपना हमारा वास्तविक आत्म अपने सबसे स्वच्छ क्षणों में देखता है और जिसका आकर्षक चित्रांकन हमारे सब धर्म और नीति-संहिताएँ करती हैं।कहानी एक परिवार की है जहाँ दो शादियाँ होनी हैं। किसी भी भारतीय परिवार में शादी के आसपास जैसा वातावरण होता है उसे संवादों और दृश्यों के रूप में जिस तरह यहाँ गिरीश कारनाड ने रूपायित किया है वह अद्भुत है और उसके साथ-साथ परिवार के अतीत में बिंधी अब तक अनकही सच्चाइयों और भावी पीढ़ी के सुविधावादी समझौतों को जितने बारीक नश्तर से उकेरा है वह भी।नाटक में कहीं भी ऐसे किसी दृश्य का आयोजन नहीं है जिसे मंच पर उतारना कठिन हो और न ही कहीं इतना शिथिल कि पढ़नेवाला पढ़ता न चला जाए।