SHARDADESH KA SADHAK : ACHARYA ABHINAV GUPT KE JIVAN PAR AADHARIT UPNYAS
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कश्मीर के लिए नवीं दसवीं और ग्यारहवीं सदी का समय एक ऐसे ज्ञान आधारित समाज के उभार का है जिसमें भारतीय मनीषा के धुरीण आचार्यों की पूरी आकाशगंगा दिखाई देती है। अभिनवगुप्त की असाधारण ख्याति का कारण ही यही है कि आनंदवर्धन मम्मट क्षेमेन्द्र श्रीशंकुक के प्रभामंडल को अपने प्रातिभ विभव की प्रखरता से मंद करते हुए वे एक ऐसे विलक्षण प्रज्ञावान चिंतक और विचारक के रूप में सामने आते हैं जिसका कोई जोड़ आने वाली कई-कई सदियों में नहीं मिलता। उपन्यासकार शैलेश ने अभिनवगुप्त के जीवनवृत्त को उपन्यास में डालने का जोखिम उठाया जो सद्यः दुष्कर ही जान पड़ता है। लेकिन कमाल यह है ''शारदादेश का साधक'' में किस्सागोई की ऐसी जादूगरी है कि आप पूरी कथा के जटिल आंतरिक विन्यासों की परवाह किए बगैर आगे बढ़ते चले जाते हैं। वितस्ता के सम्मोहक वैभव से सजी प्रकृति के बीच ज्ञान के इस सूर्य का उदय देखना हर उस पाठक के लिए विरल अवसर है जो भारतीय ज्ञान परंपरा की रोमांचक ऊँचाइयों की अनुभव करना चाहेगा। यह उपन्यास अभिनवगुप्त को उनकी गुंफित शाखीय छवि से बाहर लाकर लोकचेतना से जोड़ने का भगीरथ प्रयास है। कश्मीर के भूगोल इतिहास संस्कृति और अध्यात्म के समागम-बिंदु पर खड़ी यह रचना सहस्राब्दी पुरुष अभिनवगुप्त को प्रस्तुत करने की अनूठी रचनात्मक पहल है।
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