पृष्ठभूमिदिसंबर 1991 में सोवियत संघ के औपचारिक विघटन का पूरी दुनिया के साथ भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा। सोवियत संघ के बिखराव से भारत के कम्युनिस्ट विचारधारा वाले संगठनों में अफरा तफरी मच गई। इस घटना का भारतीय राजनीति यहां के सामाजिक एवं शैक्षणिक संस्थानों एवं संगठनों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। स्मरण रहे कि कम्युनिस्ट विचारधारा तथा इस विचारधारा से पोषित संस्थाओं के विकास और अंततः भारत को पूर्ण कम्युनिस्ट देश बनाने की व्यापक योजना के अंतर्गत 1976 में भारतीय संविधान का 42 वा संशोधन लाया गया। आजादी के बाद से 1991 तक कम्युनिस्ट विचारधारा विश्वविद्यालयों ब्यूरोक्रेसी तथा सांस्कृतिक संस्थानों को अपनी गिरफ्त में ले चुकी थी। 1990 के बाद के कालखंड में देश में भी बड़े राजनीतिक एवं सांस्कृतिक आंदोलनों के बीज अंकुरित होने लगे थे तथा इसका प्रभाव भी साफ दिखने लगा था। इन आंदोलनों को सही दिशा देने के लिए देश में विशेष कर गुजरात और उत्तरप्रदेश में कुशल नेतृत्व भी आकार लेने लगा था।उपन्यास का कथानक इसी पृष्ठभूमि में मुख्य पात्र मानव मुखर्जी जो की एक कट्टर कम्युनिस्ट और ट्रेड यूनियन लीडर है तथा मुख्य नारी पात्र शबरी के आस पास विस्तार पाता है। यह उपन्यास मुख्य रुप से उस समय के छात्र एवं मजदूर आंदोलनों विश्वविद्यालयों में कम्युनिस्ट एवं गैरकम्युनिस्ट विचारधाराओं के टकराव का लेखा जोखा प्रस्तुत करता है। उपन्यास के अंत में यह स्पष्ट हो जाता है कि कथित रूप से सर्वहारा को समर्पित नेतृत्व कैसे सर्वहारा को ही अपना आहार बनाने से नहीं चूकता।
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.