किताब के पन्नों से...लोग अपने उलझन जिसका मतलब कुफ्र है उससे नहीं निकल पाते हैं। अपने नब्ज़ो से नहीं लड़ पाते हैं। मलबल कि अपनी अंतरात्मा में नहीं झांक पाते हैं। बेशक यह ईमान की बाते हैं और अल्लाह ने इसी कुफ्र से लड़ने को कहा है। हम अपने नब्ज़ों से तो मुसलमान नहीं हो पाए सिर्फ अपने शरीर से कबूल कर लिया।क्या मैं अपनी उलझनों से तब भी नहीं लड़ पाया था लड़ तो तब भी पाया था लेकिन सुलझ नहीं पाया था। और जब होने वाली घटनाओं ने मुझे सुलझाना चाहा तो मेरे अपने ही शायद उलझाने लगें।और फिर आपने कैसे जाना कि अल्लाह और मोहम्मद से कैसे मैं मुँह फेर लूँ। मेरी हर कैफियत तो उन्ही की है और मैं इन बातों को जानने में देरी कर गया था। वह कहते हैं ना समय की अपनी रफ्तार है।यह धारणा बनने में समय नहीं लगा कि प्रकृति समय-समय पर स्वयं प्रकाशित होती है और कालांतर में अपने अस्तित्व में जा कर मिल जाती है। तो फिर लोग उनका हाल ऐसा है कि बिजली की कड़क उन्हें आ घेरे तो फिर उनमें चल देते हैं और फिर जब अंधेरा छा जाता है तो खड़े के खड़े रह जाते हैं।
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